मैं तो समाज के बीच, यानी संसार के बाजार में जलती मशाल (वैराग्य, ज्ञान) लेकर खड़ा हूँ। जो व्यक्ति अपने "घर" यानी अपने अहंकार, लोभ, मोह, कामना और स्वार्थ को खुद ही जलाने को तैयार है - वही मेरे साथ चल सकता है।
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